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फ़्रीड्रिक फ्रोबेल का किंडरगार्टन (बालवाड़ी) की संकल्पना

फ़्रीड्रिक विलियम अगस्त फ्रोबेल    जर्मनी  के प्रसिद्ध  शिक्षाशास्त्री  थे। वे पेस्तालोजी के शिष्य थे। उन्होने  किंडरगार्टन (बालवाड़ी)  की संकल्पना दी। उन्होने शैक्षणिक खिलौनों का विकास किया जिन्हें 'फ्रोबेल उपहार' के नाम से जाना जाता है। शिक्षा जगत में फ्रोबेल का महत्वपूर्ण स्थान है। बालक को पौधे से तुलना करके, फ्रोबेल ने बालक के स्वविकास की बात कही वह पहला व्यक्ति था, जिसने प्राथमिक स्कूलों के अमानवीय व्यवहार के विरूद्ध आवाज उठाई और एक नई शिक्षण विधि का प्रतिपादन किया। उसने आत्मक्रिया स्वतन्त्रता, सामाजिकता तथा खेल के माध्यम से स्कूलों की नीरसता को समाप्त किया। संसार में फ्रोबेल ही पहला व्यक्ति था जिसने अल्पायु बालकों की शिक्षा के लिए एक व्यवहारिक योजना प्रस्तुत किया। उसने शिक्षकों के लिए कहा कि वे बालक की आन्तरिक शक्तियों के विकास में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें, बल्कि प्रेम एवं सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करते हुए बालकों को पूरी स्वतन्त्रता दें। शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार का परिवर्तन लाने के लिए फ्रोबेल को हमेशा याद किया जायेगा

महात्मा गाँधी

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महात्मा गाँधी' का जन्म 2 अक्टूबर सन 1869 में पोरबंदर में हुआ था। मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए। वहां से लौटने पर उन्होंने वकालत प्रारंभ की। गांधीजी का सार्वजानिक जीवन दक्षिण अफ्रीका में प्रारंभ हुआ। उन्होंने देखा की भारतीयों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। उन्होंने भारतीयों की सहायता की। उन्होंने सत्याग्रह आन्दोलन प्रारंभ किया। उन्होंने अनेक कष्ट सहे। उनको अपमानित किया गया। अंत में उन्हें सफलता मिली। गांधीजी वापस भारत आये और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वह कई बार जेल गए। अब सारा देश उनके साथ था। लोग उन्हें राष्ट्रपिता कहने लगे। अंत में भारत को 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त हुई। गांधीजी सादा जीवन बिताते थे। उन्होंने हमको अहिंसा का पाठ पढाया। वह एक समाजसुधारक थे। उन्होंने छुआ-छूत को दूर करने का प्रत्यन किया। 30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गयी।

मांटेसरी पद्धति

मांटेसरी पद्धति  (Montessori method) ढ़ाई से 6 वर्ष के बालकों के हेतु प्रयोग में लाई जाने वाली पद्धति है जिसका विकास बीसवीं सदी के प्रारंभ में डॉ॰  मारिया मांटेसरी  द्वारा हुआ।  रोम विश्वविद्यालय  में मंदबुद्धि बालकों की चिकित्सा का कार्य करते हुए उनका ध्यान उक्त बालकों की शिक्षा की ओर गया और उन्होंने मांटेसरी पद्धति का विकास किया जो बाद में सामान्य बुद्धि बालकों के शिक्षा के लिये भी उपयोग में लाई गई। इस पद्धति पर चलाया जानेवाला पहला स्कूल अर्ध बर्बर श्रमिक बालकों के लिये सेन लोरेंजो में 6 जनवरी 1907 को खुला। 1913 में प्रथम अंतरराष्ट्रीय मांटेसरी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें अमरीका, अफ्रीका, भारत तथा कई यूरोपीय देशों के लोग सम्मिलित हुए। डॉ॰ मांटेसरी स्वयं अपने दत्तक पुत्र मारिओ मांटेसरी के साथ जीवन भर इसके प्रसार में लगी रहीं।