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Showing posts from December, 2018

व्याकरण

किसी भी  भाषा  के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन व्याकरण (ग्रामर) कहलाता है। व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा किसी  भाषा  का शुद्ध बोलना, शुद्ध पढ़ना और शुद्ध लिखना आता है। किसी भी भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने के निश्चित नियम होते हैं। भाषा की शुद्धता व सुंदरता को बनाए रखने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम भी व्याकरण के अंतर्गत आते हैं। व्याकरण भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। किसी भी "भाषा" के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "व्याकरण" कहलाता है, जैसे कि शरीर के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "शरीरशास्त्र" और किसी देश प्रदेश आदि का वर्णन "भूगोल"। यानी व्याकरण किसी भाषा को अपने आदेश से नहीं चलाता घुमाता, प्रत्युत भाषा की स्थिति प्रवृत्ति प्रकट करता है। "चलता है" एक क्रियापद है और व्याकरण पढ़े बिना भी सब लोग इसे इसी तरह बोलते हैं; इसका सही अर्थ समझ लेते हैं। व्याकरण इस पद का विश्लेषण करके बताएगा कि इसमें दो अवयव हैं - "चलता" और "है"। फिर वह इन दो अवयवों का भी विश्लेषण...

प्रेमचंद

प्रेमचंद    हिन्दी  और  उर्दू  के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं  मूल नाम  धनपत राय श्रीवास्तव , प्रेमचंद को  नवाब राय  और  मुंशी प्रेमचंद  के नाम से भी जाना जाता है।  उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर  बंगाल  के विख्यात  उपन्यासकार   शरतचंद्र चट्टोपाध्याय  ने उन्हें  उपन्यास सम्राट  कहकर संबोधित किया था।  प्रेमचंद ने हिन्दी  कहानी  और  उपन्यास  की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की  यथार्थवादी परंपरा  की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और...

सूरदास

सूरदास  का नाम  कृष्ण  भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त  कवियों  में सर्वोपरि है।  हिन्दी साहित्य  में भगवान  श्रीकृष्ण  के अनन्य उपासक और  ब्रजभाषा  के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास  हिंदी साहित्य  के  सूर्य  माने जाते हैं। हिंदी कविता कामिनी के इस कमनीय कांत ने हिंदी भाषा को समृद्ध करने में जो योगदान दिया है, वह अद्वितीय है। सूरदास हिंन्दी साहित्य में  भक्ति काल  के सगुण भक्ति शाखा के कृष्ण-भक्ति उपशाखा के महान कवि हैं। रचनाएँ सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं: (१)  सूरसागर  - जो सूरदास की प्रसिद्ध रचना है। जिसमें सवा लाख पद संग्रहित थे। किंतु अब सात-आठ हजार पद ही मिलते हैं। (२)  सूरसारावली (३)  साहित्य-लहरी  - जिसमें उनके कूट पद संकलित हैं। (४)  नल-दमयन्ती (५)  ब्याहलो