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आदिकाल

हिन्दी साहित्य के इतिहास  में लगभग 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के मध्य तक के काल को आदिकाल कहा जाता है। इस युग को यह नाम डॉ॰  हजारी प्रसाद द्विवेदी  से मिला है।  आचार्य रामचंद्र शुक्ल  ने 'वीरगाथा काल' तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे 'वीरकाल' नाम दिया है। इस काल की समय के आधार पर साहित्य का इतिहास लिखने वाले  मिश्र बंधुओं  ने इसका नाम प्रारंभिक काल किया और आचार्य  महावीर प्रसाद द्विवेदी  ने बीजवपन काल। डॉ॰  रामकुमार वर्मा  ने इस काल की प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर इसको चारण-काल कहा है और  राहुल संकृत्यायन  ने सिद्ध-सामन्त काल। इस समय का साहित्य मुख्यतः चार रूपों में मिलता है : सिद्ध-साहित्य  तथा  नाथ-साहित्य , जैन साहित्य, चारणी-साहित्य, प्रकीर्णक साहित्य।

भक्ति काल

हिंदी साहित्य में भक्ति काल अपना एक अहम और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आदिकाल के बाद आये इस युग को पूर्व मध्यकाल भी कहा जाता है। जिसकी समयावधि संवत् 1375 से संवत् 1700 तक की मानी जाती है। यह हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग है। जिसको जॉर्ज ग्रियर्सन ने स्वर्णकाल, श्यामसुन्दर दास ने स्वर्णयुग, आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने भक्ति काल एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लोक जागरण कहा। सम्पूर्ण साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएं इसी युग में प्राप्त होती हैं। दक्षिण में आलवार बंधु नाम से कई प्रख्यात भक्त हुए हैं। इनमें से कई तथाकथित नीची जातियों के भी थे। वे बहुत पढे-लिखे नहीं थे, परंतु अनुभवी थे। आलवारों के पश्चात दक्षिण में आचार्यों की एक परंपरा चली जिसमें रामानुजाचार्य प्रमुख थे। रामानुजाचार्य की परंपरा में रामानंद हुए। उनका व्यक्तित्व असाधारण था। वे उस समय के सबसे बड़े आचार्य थे। उन्होंने भक्ति के क्षेत्र में ऊंच-नीच का भेद तोड़ दिया। सभी जातियों के अधिकारी व्यक्तियों को आपने...

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद  (30 जनवरी 1889 - 15 नवम्बर 1937)   हिन्दी  कवि, नाटककार उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के  छायावादी युग  के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक हैं। उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से  छायावाद  की स्थापना की जिसके द्वारा  खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और  कामायनी  तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी। काव्य कानन कुसुम महाराणा का महत्व झरना आंसू लहर कामायनी प्रेम पथिक 

मलिक मोहम्मद जायसी

मलिक मुहम्मद जायसी  (१४६७-१५४२) हिन्दी साहित्य के  भक्ति काल  की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि थे। वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार  सूफ़ी  महात्मा थे। जायसी मलिक वंश के थे।  मिस्र  में सेनापति या प्रधानमंत्री को मलिक कहते थे।  दिल्ली सल्तनत  में  खिलजी वंश  राज्यकाल में  अलाउद्दीन खिलजी  ने अपने चाचा को मरवाने के लिए बहुत से मलिकों को नियुक्त किया था जिसके कारण यह नाम उस काल से काफी प्रचलित हो गया था।  इरान  में मलिक जमींदार को कहा जाता था व इनके पूर्वज वहां के निगलाम प्रान्त से आये थे और वहीं से उनके पूर्वजों की पदवी मलिक थी। मलिक मुहम्मद जायसी के वंशज अशरफी खानदान के चेले थे और मलिक कहलाते थे।  फिरोज शाह तुगलक  के अनुसार बारह हजार सेना के रिसालदार को मलिक कहा जाता था।  जायसी ने शेख बुरहान और सैयद अशरफ का अपने गुरुओं के रूप में उल्लेख किया है।

छायावाद

छायावाद  हिंदी साहित्य के रोमांटिक उत्थान की वह काव्य-धारा है जो लगभग ई.स. १९१८ से १९३६ तक की प्रमुख युगवाणी रही।  जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', पंत, महादेवी वर्मा इस काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। छायावाद नामकरण का श्रेय मुकुटधर पाण्डेय को जाता है। मुकुटधर पाण्डेय ने श्री शारदा पत्रिका में एक निबंध प्रकाशित किया जिस निबंध में उन्होंने छायावाद शब्द का प्रथम प्रयोग किया | कृति प्रेम, नारी प्रेम, मानवीकरण, सांस्कृतिक जागरण, कल्पना की प्रधानता आदि छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषताएं हैं। छायावाद ने हिंदी में खड़ी बोली कविता को पूर्णतः प्रतिष्ठित कर दिया। इसके बाद ब्रजभाषा हिंदी काव्य धारा से बाहर हो गई। इसने हिंदी को नए शब्द, प्रतीक तथा प्रतिबिंब दिए। इसके प्रभाव से इस दौर की गद्य की भाषा भी समृद्ध हुई। इसे 'साहित्यिक खड़ीबोली का स्वर्णयुग' कहा जाता है। छायावाद के नामकरण का श्रेय 'मुकुटधर पांडेय' को दिया जाता है। इन्होंने सर्वप्रथम 1920 ई में जबलपुर से प्रकाशित श्रीशारदा (जबलपु...

तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास   हिंदी साहित्य के महान  कवि  थे। इनका जन्म  सोरों  शूकरक्षेत्र, वर्तमान में  कासगंज    उत्तर प्रदेश  में हुआ था। कुछ विद्वान् आपका जन्म राजापुर जिला  बाँदा  में हुआ मानते हैं। इन्हें आदि काव्य  रामायण  के रचयिता महर्षि  वाल्मीकि  का अवतार भी माना जाता है।  श्रीरामचरितमानस  का कथानक  रामायण  से लिया गया है। रामचरितमानस लोक ग्रन्थ है और इसे उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। इसके बाद  विनय पत्रिका  उनका एक अन्य महत्त्वपूर्ण काव्य है। महाकाव्य श्रीरामचरितमानस को विश्व के  सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में ४६वाँ स्थान दिया गया। तुलसीदास की रचनाएँ रामचरितमानस                    संकट मोचन करखा रामायण रोला रामायण झूलना छप्पय रामायण कवित्त रामायण कलिधर्माधर्म निरूपण हनुमान चालीसा कवितावली गीतावली श्रीकृष्ण-गीतावली विनय-पत्रिका सतसई छंदावली रामायण कुंडलिया रामायण राम शलाका राम...